ज्योतिष् (Astrology): सिधान्त, समस्या, उपाय


ज्योतिष् का धार्मिक और व्यावहारिक पक्ष

हिंदू धर्मग्रंथों के हिसाब से वैदिक ज्योतिष् उतना हि पूराना है जितनी मानव सभ्यता| इसका सबसे पहला प्रमाण हमें ऋग्वेद से मिलता है| इस हिसाब से हम मानकर चलते है कि ये पद्धति कम से कम पाँच हज़ार साल पूरानी ज़रूर है|
ज्योतिष् के मुख्यरूप से तीन भाग है- संहिता. जातक (होरा), और सिद्धांत| देश, काल, राजनीतिक पार्टी एवं प्राणियों के बारे में शुभाशुभ फल बतलाना संहिता के अंतर्गत आता है| ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, गति, सृष्टि-प्रल्यान्त काल के परिगमन को सिधान्त कहते है| व्यक्ति विशेष का फल कथन जातक अथवा होरा के अंतर्गत आता है|
जिन महर्षियों ने अपने-अपने समय में ज्योतिष् शास्त्र के तीनों स्कंधों के ग्रंथो पर अपना - अपना विचार व्यक्त किया है उनमें नारद, वशिष्ट, लोमश, भृिगु, जैमिनीऔर पराशर मुख्य है| आज के समय में पराशर मुनि होरा सिधान्त सबसे प्रचलित है जिसके अंतर्गत जन्मांग चक्र के आधार पर जातक के भूत, वर्तमान और भविष्य का फलकथन कहा जाता है|होरा संस्कृत के दो शब्दों अहो एवं रात्रि से बना है, जिसका अर्थ होता है एक पूर्ण दिन-रात्रि कि. अवधि|
ज्योतिष् सिधान्त: जैसा कि हमलोंग जानते है पूरा ब्रह्मांड सूर्य, चंद्र, ग्रह एवं नक्षत्रों के गुरुत्वाकर्षण बल से भरा हुआ है, पूरे ब्रह्मांड में कोई एसा तत्व नहीं है जिसमें गुरुत्वाकर्षण बल ना हो| विग्यान ने यह साबित कर रखा है कि सूक्ष्म परमाणु भी इलेक्ट्राण, न्युट्राण और प्रोट्रान से बना है जो आपस में गुरुत्वाकर्षण बल से आवेशित होकर आपस में जुड़ा है| गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही पृथ्वी सूर्य का और चाँद पृथ्वी का चक्कर लगाता है| पूरे ज्योतिष् शास्त्र का सिधान्त इसी गुरुत्वाकर्षण बल पर आधारित है| ज्योतिष् सिधान्त के अनुसार यही गुरुत्वाकर्षण बल मानव मस्तिश को प्रभावित करता है| सूर्य पर उठने वाला तूफान पृथ्वी के वातावरण को प्रभावित करता है| पूर्णिमा के दिन समुद्र में ज्वार-भाटा का उठना अक्शर देखा गया है, रिसर्च से सावित हो गया है कि पूर्णिमा के दिन मानव समुदाय में आत्महत्या कि प्रवृति ज़्यादा होती है एवं इस दिन दिल कि धड़कन अन्य दिनों कि अपेक्षा तेज होती है|
व्यवहारिक सिधान्त: अगर वास्तव में देखा जाय तो सूर्य-चंद्र के प्रभाव के अलावा इस  सीधांत का कोई व्यवहारिक पक्ष नहीं है, जिसमें यह साबित हो रखा हो कि ग्रहों के इस योग से ऐसा होगा ही होगा| ज्योतिष् शास्त्र का पूरा सिधान्त तर्क पड़ आधारित है, जैसे कुंडली का पहला घर व्यक्ति के स्वयं के बारे में बताता है तो सामने का सातवाँ घर पत्नी के बारे में|
जैसे कि मैं पहले लिख चुका हूँ ज्योतिष् केवल सिधान्त पड़ आधारित है, इसकी मेक्सीमम अक्यूरेसी मात्र तीस प्रतिशत तक सीमित है| प्राचीन काल में जहाँ लोगों के काम-काज और रहण-सहन सीमित थे तो उस समय इस ज्योतिष् सिधान्त पड़ अनुसंधान करने के लिए ना तो मौलिक सुविधाएँ थी ना ही जरुरत| आज से समय में अगर सुविधाएँ है और विग्यान के रूप में इसपे अनुसंधान कि ज़रूरत है तो संबंधित लोंग ऐसा करना नहीं चाहते क्यूकी इससे इनकी दुकानदारी ख़त्म हो जाएगी|
किसके कारण ज्योतिष् बदनाम: ज्योतिष् शास्त्र बहुत ही ग़ूढ एवं विस्तृत विषय है| इसके सिधान्त के अंतर्गत इसका गणित जिसके माध्यम से फल कथन कहा जाता है बहुत ही विस्तृत है| एक-दो किताब पढ़कर ज्योतिष् बने हुए का फल कथन ऐसा ही है जैसे एक झोला छाप डॉक्टर द्वारा इलाज| आजकल टेलीविज़न चैनलों पड़ तथाकथित बड़े-बड़े ज्योतिष् लाइव प्रश्न सुनकर दो सेकेंड में उत्तर दे देते हैं, उनको कुंडली विश्लेषण कि कोई ज़रूरत नहीं पड़ती ये सरासर दुकानदारी है| अच्छे से अच्छे ज्योतिषी को कुंडली विश्लेषण के लिए कम से कम पाँच मिनट का समय चाहिए| आजकल बड़े-बड़े माल एवं कमर्शियल एरिया में कोट- टाई लगाकर बैठे हुए ज्योतिष् सलाहकार दो ही उपाय बताते हैं जो खर्चीला है| पहला हवन-जाप और दूसरा रत्न धारण| सत्य बात ये है किहवन-जाप के लिए जिस योग्य पंडितकि आवश्यकता होती है वो मुश्किल से भी उपलब्ध नहीं है, जो उपलब्ध है उसको खुद ना तो कोई मंत्र का ग्यान है ना ही आसन और मुद्राओं का जिसका परिणाम होता है व्यक्ति को मोटी रकम खर्च करने के बाद उचित फ़ायदा ना मिलना फिर वो इस ज्योतिष् शास्त्रा को हि ग़लत मान लेता है| दूसरा उपाय विपरीत ग्रहों के लिए रत्न धारण, ये ऐसे ही है जैसे सामने खड़े दुश्मन के हाथ मे बंदूक थमाना| ज़रूरी नहीं है कि ज्योतिष् शास्त्र में विपरीत ग्रहों कि शान्ती के लिए केवल हवन-जाप और रत्न धारण का ही प्रावधान हो| वृहस्पति ग्रह के लिए पाँच रुपये का केले के जड़ का ताबीज़ उतना ही काम करता है जितना पचीस हज़ार का पुखराज पत्थर|
निष्कर्ष: ज्योतिष् शाश्त्र को झुठलाना ग़लत है| एक कहावत है झूठ ज़्यादा दिन नहीं चलता और ये ज्योतिष् हज़ारो वर्षो से चला रहा है इसका मतलब है कुछ तो है| ये बात सत्य है कि ग्रह नक्षत्र मानव जीवन को प्रभावित करते है लेकिन जीवन में घटने वाली हर घटना के लिए ये ग्रह-नक्षत्र ज़िम्मेदार नहीं है| और विग्यान कि तरह इसकी भी एक सीमा है|
पराशर कृत होराशाश्त्र में स्पष्ट उल्लेख है कि समय, स्थान और परिस्थिति के हिसाब से व्यक्ति के फलादेश में अंतर आता है यानी इन तीन चीज़ों से मानव जीवन प्रभावित होता है| इसको एक उदाहरण से समझें, आज से तीस-चालीस वर्ष पहले इक्का-दुक्का कोई प्रेम विवाह देखने को मिलता था आज ये आम बात हो गया है| अब क्या कहेंगे आज की कुंडली में प्रेम विवाह के योग ज़्यादा हो गये है? बिल्कुल ग़लत| पहले का सामाजिक माहौल ऐसा नही था|
ज्योतिष् शाश्त्र से फ़ायदा लेने के लिए इसपर विश्वास होना परम आवश्यक है| अगर विश्वास ना हो तो डॉक्टर का इलाज भी मनमाफ़िक फ़ायदा नहीं करता है|

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