मंगल दोष और मांगलिक



क्या है मांगलिक दोष? बच्चे का मांगलिक होना वास्तव में चिंता का विषय है? क्या है इसका वैज्ञानिक आधार? जानिए इस लेख से !
भारतीय ज्योतिष में मांगलिक दोष की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यह माना जाता है कि अगर मंगल ग्रह किसी कुंडली के 1,2,4,7,8 या 12वें भाव में स्थित हो तो उस कुंडली में मांगलिक दोष बन जाता है जिसके कारण कुंडली धारक की शादी में देरी हो सकती है अथवा/और उसके वैवाहिक जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं एवम बाधाएं सकती हैं तथा बहुत बुरी हालत में कुंडली धारक के पति या पत्नि की मृत्यु भी हो सकती है। इस गणना के लिए लग्न भाव को पहला भाव माना जाता है तथा वहां से आगे 12 भाव निश्चित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का लग्न मेष है तो मेष, वृष, कर्क, तुला, वृश्चिक तथा मीन राशि में स्थित होने पर मंगल ग्रह उस व्यक्ति की कुंडली में क्रमश: 1,2,4,7,8 तथा 12वें भाव में आएगा और प्रचलित परिभाषा के अनुसार उस व्यक्ति की कुंडली में मांगलिक दोष बन जाएगा। मांगलिक दोष वाले व्यक्तियों को साधारण भाषा में मांगलिक कहा जाता है
   इस परिभाषा के आधार पर ही अगर मांगलिक दोष बनता हो तो दुनिया में 50 प्रतिशत लोग मांगलिक होंगे क्योंकि कुंडली में कुल 12 ही भाव होते हैं तथा उनमें से उपर बताए गए 6 भावों में मंगल के स्थित होने की संभावना 50 प्रतिशत बनती है। तो इस परिभाषा के अनुसार दुनिया में आधे लोगों के विवाह होने में तथा वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएं होनी चाहिएं जिनमे तलाक और वैध्वय जैसी स्थितियां भी शामिल हैं। इस दोष के अतिरिक्त पित्र दोष, काल सर्प दोष, नाड़ी दोष, भकूट दोष जैसे कई दोष किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में समस्याएं पैदा करने में सक्षम हैं। इन सारी गणनाओं को अगर जोड़ दिया जाए तो दुनिया में कम से कम 80-90 प्रतिशत लोगों के वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएं हैं जो कि तो तर्कसंगत लगता है और ही व्यवहारिक रूप से देखने में आता है। तो इस चर्चा का सार यह निकलता है कि मांगलिक दोष असल व्यवहार में उतनी कुंडलियों में देखने में नहीं आता जितना इसकी प्रचलित परिभाषा के अनुसार बताया जाता है। आइए अब देखें कि कुंडली के 1,2,4,7,8 तथा 12वें भाव में स्थित होने पर मंगल ग्रह क्या क्या संभावनाएं बना सकता है|
 मंगल का कुंडली में उपर बताये 6 भावों में स्थित होना अपने आप में मांगलिक दोष बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है तथा इन 6 भावों में स्थित मंगल विभिन्न प्रकार की संभावनाएं बना सकता है। इन भावों में स्थित मंगल वास्तव में मांगलिक दोष बना सकता है, इन भावों में स्थित मंगल कोई भी दोष या योग बना कर लगभग सुप्त अवस्था में बैठ सकता है तथा इन भावों में स्थित मंगल मांगलिक योग बना सकता है। मांगलिक योग मंगल के द्वारा बनाया जाने वाला एक बहुत ही शुभ योग है जो किसी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन को बहुत सुखमय तथा मंगलमय बनाने में पूरी तरह से सक्षम है। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि मांगलिक दोष और मांगलिक योग के फल एक दूसरे से बिल्कुल ही विपरीत होते हैं किन्तु फिर भी ये दोनो योग-दोष मंगल के कुंडली में 1,2,4,7,8 तथा 12वें भाव में स्थित होने से ही बनते हैं। इस लिए मंगल के कुंडली के इन 6 भावों में स्थित होने का मतलब सिर्फ मांगलिक दोष का बनना ही नहीं होता बल्कि मांगलिक योग का बनना भी होता है जो किसी भी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के लिए बहुत मंगलकारी योग है।
  इस लिए अगर आपकी कुंडली में मंगल उपर बताये गए 6 भावों में से किसी एक में स्थित है तो आप के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि आपकी कुंडली में वास्तव में मांगलिक दोष बनता भी है या नहीं। और अगर आपकी कुंडली में मांगलिक दोष उपस्थित हो भी, तब भी कुछ महत्त्वपूर्ण बातों पर गौर करना बहुत आवश्यक है, जैसे कि कुंडली में यह दोष कितना बलवान है तथा किस आयु पर जाकर यह दोष पूर्ण रूप से जाग्रत होगा। मांगलिक दोष के बुरे प्रभावों को पूजा, रत्नों तथा ज्योतिष के अन्य उपायों के माध्यम से बहुत हद तक कम किया जा सकता है।


मंगल दोष का भ्रम ग्रामीण समाज से ज़्यादा शहरी समाज में फैला हुआ है जहाँ लोग अपने आप को ज़्यादा पढ़े-लिखे और सभ्य समझते हैं| हमारे यहाँ  के ग्रामीण समाज में शादी से पहले किसी कि कुंडली मिलान नहीं होती, हक़ीकत ये है कि बहुत के पास तो कुंडली होती भी नही है जबकि शहरी समाज में शादी से पहले पंडित को बुलाकर लड़के-लड़की का गुण मिलान होता है और ३६ में से कम से कम १८ गुण मिलने पर शादी होती है| जैसा कि मैने उपर लिखा है मान्यता के अनुसार मंगल दोष का दुष्परिणाम  पती-पत्नी में आपसी कलह, तलाक़ और दोष प्रबल होने पर एक कि मौत कि संभावना रहती है| अब आकड़े उठाकर देखें तो ग्रामीण समाज में शहरों कि अपेक्षा पती-पत्नी के बीच आपसी कलह बहुत कम है और तलाक़ तो नगण्य है|
दरअसल पती-पत्नी के बीच का संबंध सात जन्म का नही तो कम से कम पूरे एक जन्म का ज़रूर होता है और पूरे एक जन्म साथ निभाने के लिए आपसी विश्वास, समर्पण और समझौते कि ज़रूरत होती है जो की आज देखने को कम मिलती है चाहे इसके पिछे कारण कुछ भी हो| आज से १५-२० वर्ष पहले तक ना तो इतनी आपसी कलह थे ना ही इतने तलाक़ होते थे जबकि कुंडली में मंगल दोष तो पहले भी होता था|

ज़्यादातर मामलो में पती-पत्नी के आपसी संबंधों को सुधारने के लिए मंगल को नहीं बल्कि अपने आप को ठीक करने कि ज़रूरत है|

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