"पितृ तर्पण" नैतिक कर्तव्य
भारत एक धर्म
प्रधान देश है|
हम हर उपलक्ष्य
में कोई न
कोई पर्व मनाते
है, मसलन देव
पर्व के रूप
में दशहरा, दीपावली,
गणेश पुजा, प्रकृति
पर्व के रूप
में नाग पंचमी,
वट सावित्री आदि|
उसी तरह हमारे
यहाँ पितृपक्ष मनाने
की प्रथा है
जो हम अपने
पूर्वजों कि याद
में मनाते है
जो अब हमारे
बीच नहीं है|
हम पेड़-पौधे,
नदी-तालाब, और
विषैले नाग तक
की पुजा करते
है| हम इतने
सभ्य हो गये
हैं कि अंजान
लोगों कि आत्मा
कि शांति के
लिए कैंडल मार्च
निकलते है तो
अपने पूर्वजों कि
आत्मा कि शांति
के लिए एक
अंजलि जल तो
बनता है|
भारत शायद अकेला
देश है जहाँ
इस तरह .के
पर्व मनाए जाते
हैं| इसका मुख्य
कारण है हम
अपने माता-पिता
के प्रति जो
श्रधा रखते है
और कहीं देखने
को कम मिलता
है, परिवारिक सूत्र
हमारे जितने मजबूत
है कहीं और
नहीं| हमारे ऋषि-मुनियों ने शास्त्र
के माध्यम से
बहुत पहले बता
दिया कि मनुष्य
मरने के बाद
प्रेत योनि में
जाता है और
उसका पुनर्जन्म होता
है| अभी तक
जीतने भी इसपे
रिसर्च हुए है
उससे अब पश्चिम
वाले भी इस
बात को मानने
के लिए मजबूर
हो रहे है|
मतलब साफ है
अगर प्रेतयोनि है
तो उसकी ज़रूरतें
भी होगी|
श्रद्धया इदं श्राद्धम: जो
श्रद्धा से किया
जाय वो श्राद्ध
है| मई इस
विषय पर नहीं
जवँगा कि श्राद्ध
कहाँ करे, कैसे
करे| इस विषय
पर ढेरों लेख
भरे परे हैं|
कुछ लोग प्रस्न
उठाते है हम
जो यहाँ अपने
पूर्वजों के लिए
कुछ करेंगे वो
उनको कैसे प्राप्त
होगा| इस विषय
पर भी शास्त्र
का अपना तर्क
है, मै उस
तर्क पे भी
नहीं जाना चाहूँगा|
मेरा सीधा सा
तर्क है जिस
माता-पिता ने
हमें जन्म दिया,
पढ़ाया-लिखाया, इस लायक
बनाया कि हम
समाज में इज़्ज़त
से रह सकें
उनके प्रति हमारा
नैतिक कर्तव्य क्या
है?
अब ये तो
संभव नहीं कि
धरती पर जीतने
लोंग जन्म ले
वो ऐसा कर
जाय कि पुरा
राष्ट्र उनकी पुण्यतिथि
मनाए| इस मामले
में हमारे ऋषि-मुनि कुछ
ज़्यादा दूर दृष्टि
रखते थे, उन्होने
इसको धर्म का
रूप दिया ताकि
लालच वश हि
सही हम कुछ
करें और इसके
पाप पुण्य के
बारे में लिखा:-
एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाज्जलीन्। यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।
अर्थात एक-एक
पितर को तिलमिश्रित
जल कि तीन-तीन अंजलियाँ
प्रदान करें| इस प्रकार
तर्पण करने से
जन्म से आरंभ
कर तर्पण के
दिनतक किए पाप
उसी समय नष्ट
हो जाते हैं|
अतर्पिताह शरीराद्रुधिरम पिबन्ति
अर्थात ब्रह्मादिदेव एवं पितृगन
तर्पण न करने
वाले मानव के
शरीर का रक्तपान
करते हैं|
श्राद्ध का परिचय:- ब्रह्मपुराण
के अनुसार, " जो
कुछ उचित काल,पात्र एवं स्थान
के अनुसार उचित
विधि द्वारा पितरों
को लक्ष्य करके
श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मणों को
दिया जाता है,
वह श्राद्ध कहलाता
है" | यहाँ ब्राह्मण
शब्द का अर्थ
है जो ज़रूरतमंद
हो, शिक्षित हो
एवं आपके दिए
दान का सदुपयोग
करे| चूकि ये
शास्त्र वचन हज़ारों
वर्ष पूर्व लिखे
गये है, उस
वक्त ब्राह्मण शिक्षित
एवं दरिद्र हि
हुया करते थे|
आज के पूंजीपति
ब्राह्मण को दान
देने का कोई
फल नहीं है|
आजकल देखने में
आता है कि
लोग महँगी चीज़े
दान कर अपने
बहन-बेटियों को
दे देते है|
एक भरे-पूरे
व्यक्ति को छप्पन
भोग खिलाने में
जो फल है
उससे ज़्यादा फल
है एक भूखे
ग़रीब को नमक-रोटी खिलाने
में|
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