आजकल ज्योतिषियों द्वारा जितने
भी योग कुंडली
में गिनाए जा
रहे हैं उसमें
कालसर्प योग अथवा
कालसर्प दोष सबसे
उपर चल रहा
है| हर चार-पाँच कुंडली
में से एक
में कालसर्प दोष
बतलाकर लोगों को भ्रमित
किया जा रहा
है जैसे आपकी
जिंदगी में सारी
समस्यायों का जड़
यही है और
आपने तथाकथित उस
ज्योतिषी से एकबार
उपाय करबाया और
सारी समस्यायों से
छुट्टी|
क्या
है कालसर्प दोष:- सबसे पहले यह जान लें कि काल सर्प दोष और काल सर्प योग दोनों का एक ही मतलब है तथा इनमें कोई अंतर नहीं है। प्रचलित परिभाषा के अनुसार कुंडली के सारे ग्रह, सूर्य, चन्द्र, गुरू, शुक्र, मंगल, बुध तथा शनि जब राहू और केतु के बीच में आ जाएं तो ऐसी कुंडली में काल सर्प दोष बनता है। उदाहरण के तौर पर अगर राहू और केतु किसी कुंडली में क्रमश: दूसरे और आठवें भाव में स्थित हों तथा बाकी के सात ग्रह दो से आठ के बीच या आठ से दो के बीच में स्थित हों तो प्रचलित परिभाषा के अनुसार ऐसी कुंडली में काल सर्प दोष बनता है| इतना हि नही, अगर कोई एक ग्रह राहु-केतु
के चंगुल से बाहर दूसरी ओर आ जाता है उस स्थिति में भी अल्प कालसर्प दोष माना जाता
है| और ऐसी कुंडली वाला व्यक्ति अपने जीवन काल में तरह-तरह की मुसीबतों का सामना करता है तथा उसके किए हुए अधिकतर प्रयासों का उसे कोई भी लाभ नहीं मिलता।
राहु-केतु कि
मान्यता:- अन्य ग्रहों
कि तरह राहु
एवं केतु को
भी ग्रहों में
स्थान प्राप्त है|
लेकिन अन्य ग्रहों
कि तरह राहु
एवं केतु कोई
भौतिक पिंड नही
है यानी इसको
हम खुली आँखों
से देख नहीं
सकते| ज्योतिष् मान्यता
के अनुसार राहु-केतु छाया
ग्रह है| ये
छाया ग्रह पृथ्वी
और चंद्र के
भ्रमण पथ पर
आमने-सामने दो
कटान बिंदु है
जिसे राहु और
केतु नाम दिया
गया है और
ये हमारी
जिंदगी को प्रभावित
करता है|
एक
पौराणिक मान्यता के अनुसार
समुद्र मंथन से
जो अमृत निकला
था उसे भगवान
विष्णु नारी रूप
धारण कर देवताओं
में बाँट रहे
थे| राक्षस राज
राहु देवताओं का
रूप धारण कर
सूर्य- चन्द्र के बीच
आ बैठा| जबतक
भगवान विष्णु समझ
पाते राहु अमृत
का एक बूँद
पी चुका था|
भगवान विष्णु को
जब ये पता
चला उन्होने अपने
सुदर्शन चक्र से
राहु का गर्दन
काट दिया| चूकि
राहु अमृत का
एक बूँद पी
चुका था इसलिए
वह अमर हो
गया| उसके शरीर
के दो टुकड़े
सर राहु और
धड़ केतु बनकर
सौरमंडल में अपना
स्थान बना लिया|
पौराणिक मान्यता के अनुसार
यही राहु-केतु
सूर्य और चंद्र
ग्रहण के कारण
है|
तर्क
कि कसौटी पर:-
जैसा कि मान्यता
है राहु-केतु
कोई पिंड नहीं
छाया ग्रह है|
अब सवाल उठवा
है पिंड नहीं
तो छाया कैसे?
जैसा कि हम
सब जानते है
छाया किसी भौतिक
वस्तु (physical object ) का बनता
है| छाया बनने
के लिए दो
चीज़ों का होना
परम आवश्यक है|
पहला रोशनी और
दूसरा कोई वस्तु
जिसका कोई आकार
हो, जो कि
यहाँ नहीं है|
छाया बनने के
जो दो माध्यम
है उसमें कोई
भी परिवर्तन होने
पर छाया परिवर्तित
हो जाती है|
यानी छाया कि
न तो अपनी
कोई अस्तित्व है
ना ही कोई
ताक़त| फिर इस
छाया से हमारा
कुछ बिगर जाएगा
सोचने वाली बात
है|
कालसर्प
दोष कि वास्तविकता:- ज्योतिष्
शास्त्र कि सर्वमान्य
ग्रंथ पराशर कृत
वृहद होराशास्त्र में
कालसर्प दोष कि
कोई चर्चा नहीं
है और ना
हि अन्य जगह
ऐसी कोई चर्चा
है जिससे हम
भयभीत हो| वास्तव
में कालसर्प दोष
आजकल के ज्योतिष्
दुकानदारों कि देन
है| उसमें भी
दक्षिण भारत के
ज्योतिषी ज़्यादा आगे है
जिसका परिणाम है
त्रयम्ब्केस्वर को इसके
समाधान के लिए
सबसे उपयुक्त जगह
माना गया है|
दक्षिण के एक
ज्योतिषी महोदय ने अपने
पोर्टल पर इस
बात कि बेदना
प्रकट की है
कि पौराणिक
ग्रंथो में इसका
उल्लेख नहीं है
और वर्तमान ज्योतिषी
भी कालसर्प दोष
कि उतनी चर्चा
नहीं करते| यानी
दुकानदारी में रुकावट|
एक महाशय ने
तो यहाँ तक
लिखा है कि
हमारे ऋषि-मुनियों
का ध्यान इस
ओर नहीं गया
और उन्होने हि
सर्वप्रथम इस दोष
को उजागर किया
है| यानी हमारे
ऋषि-मुनि जो
नहीं कर पाए
वो इस महाशय
ने कर दिया|
कालसर्प
दोष युक्त कुछ
व्यक्ति:- स्वतंत्र भारत कि
कुंडली, सचिन तेंदुलकर,
सौरभ गांगुली,लता
मंगेशकर, पं जवाहरलाल
नेहरू, मोरारजी देसाई, लाल
बहादुर सास्त्री, चंद्रशेखर, शंकर
राव चव्हान, राम
कथावाचक मुरारी बापू| अब
आप खुद समझ
सकते है कालसर्प
दोष कि वास्तविकता
क्या है|
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