"गंडमूल दोष" ज्योतिष् का आई. सी. यू.
"गंडमूल
दोष" ज्योतिष् का आई.
सी. यू.- जी
हाँ सही कहा
मैने, आजकल किसी
बच्चे का जन्म
गंडमूल में पाया
जाता है तो
ज्योतिषी इस
बच्चे को पिता
अथवा अन्य लोंगो
द्वारा देखने से पहले
तरह-तरह के
ज्योतिष् समाधान बतलाते है
अन्यथा तरह-तरह
कि अनिष्ट कि
आशंका बतलाते हैं|
क्या है गंडमूल
अथवा मूल दोष-
अश्विनी, श्लेषा, मघा, ज्येष्ठा,
मूल और रेवती
इन छः में
से किसी एक
नक्षत्र में बच्चे
का जन्म हो
तो गंडमूल दोष
माना जाता है
तथा ऐसा होने
पर कहीं पिता
को दोष, कहीं
बालक को दोष,
धन हानि आदि
होने कि आशंका
बतलाया जाता है|
गंडमूल दोष क्यों
- जैसा कि हम
जानते हैं सौरमंडल
में कुल २७
नक्षत्र हैं और
प्रत्येक नक्षत्र के चार
चरण होते है
इस प्रकार २७x४
= १०८ नक्षत्र हुए|
इसी तरह कुल
बारह राशि होते
है| १०८/१२
= ९ यानी एक
राशि में कुल
९ चरण अथवा
एक राशि में कुल
सवा दो नक्षत्र|
चंद्रमा अपने भ्रमण
के दौरान इन
२७ नक्षत्र और
राशियों से गुज़रता
है| जैसे रात
और दिन का
संधिकाल सुबह-शाम
है वैसे हि
चंद्रमा जब एक
नक्षत्र से दूसरे
अथवा एक राशि
से दूसरे राशि
में प्रवेश करता
है तो उसे
संधिकाल कहते हैं|
इस प्रकार एक
भ्रमण काल में
जो कि तकरीबन
२८ दिन का
होता है के
दरम्यान २७ बार
नक्षत्रों का संधिकाल
तथा १२ बार
राशियों का संधिकाल
आता है| इस
दरम्यान तीन संधिकाल
ऐसे होते है
जब राशियों का
संधिकाल एवं नक्षत्रों
का संधिकाल एक
साथ घटित होता
है और इसे
हि गुंडमूल दोष
अथवा मूल दोष
कहते हैं| ज्योतिष्
कि मान्यता है
कि इस संधिकाल
के दौरान दो
राशियों और दो
नक्षत्रों का रश्मि
बालक पर एकसाथ
पड़ता है जो
अशुभ है|
गंडमूल से संबंधित
नक्षत्र और राशि
इस प्रकार है-
नक्षत्र राशि
रेवती + अश्वनी - मीन
+ मेष
श्लेषा + मघा - कर्क
+ सिंह
ज्येष्ठा + मूल - वृश्चिक + घनु
पक्ष- विपक्ष का आधार-
कुल २७ में
से ६ नक्षत्र
में जन्म गुंडमूल
दोषयुक्त है इस
प्रकार २७/६
= ४.५ यानी
जितने बच्चे जन्म
लेते है उनमे
से ४-५ में एक
बच्चा गंडमूल दोष
युक्त होता है
यानी इतने बच्चे
अथवा इनके पिता
का जीवन कष्टमय
होना चाहिए| मुझे
तो ऐसा देखने
में नहीं आता,
आप अपने स्तर
पर विचार करके
देख सकते हैं|
ज्योतिष् शास्त्र इन नक्षत्रों
के आगे- पीछे
के दो-दो
चरण को हि गंडमूल
दोष माना है
जबकि आजकल के
ज्योतिष् अपने दुकान
बढ़ाने के लिए
पूरे-पूरे नक्षत्र
को हि गंडमूल
में ले लिया
है ताकि अधिक
से अधिक कुंडली
इसमें समाहित हो
सके| मेरे हिसाब
से व्यावहारिक तौर
पर ये दोनों
ही तर्क ग़लत
है|क्योंकि दो
नक्षत्रों के चार
चरण कि अवधि
होती है तकरीबन
२४ घंटे| संधिकाल
होती है कुछ
मिनटों कि अथवा
ज़्यादा से ज़्यादा
एक आध घंटे
की| ये ऐसे
होता है जैसे
दिन-रात के
मध्य सुबह-शाम
का वो वक्त
जिसमे कोई वस्तु
धुंधला दिखाई देता है|
इस एक-आध
घंटे में जन्म
लेनेवाले एक-आध
बच्चे गंडमूल दोष
से पीड़ित हो
ये जायज़ हो
सकता है| दूसरी
बात अगर चंद्रमा
कुंडली में स्वगृही,
उच्च, शुभ ग्रह
युक्त अथवा दृष्टि
है तो गंडमूल
दोष प्रभावहीन माना
जाएगा|
व्यवहारीक़
पक्ष- एक बच्चा
जो अभी-अभी
जन्म लिया है
और सही से
सांस लेना भी
नहीं सीखा है,
अगर माँ - बाप
ध्यान न रखे
तो जिस बच्चे
का चूहा भी
अंगुली खा ले,
भला वो बच्चा
अपने माँ -बाप
का कैसे अहित
कर सकता है|
जिस बच्चे को
पाने के लिए
हम तरह-तरह
के यत्न करते
हैं भला वो
बच्चा हमारे लिए
अशुभ कैसे हो
सकता है|हमारे
लिए जो भी
शुभ -अशुभ होता
है उसके लिए
हम खुद ज़िम्मेदार
होते है| हाँ
ये हो सकता
है कि हमारे
बुरे कर्मों के
कारण हमारे
बच्चों का कुछ
अहित हो जाय|
ज्योतिष् शास्त्र पूरा का
पूरा सिधान्त पर
आधारित है और
इसका एक भी
सिधान्त अनुसंधान पर आधारित्र
नहीं है| यानी
पूरा का पूरा
आस्था का विषय|
अगर गंडमूल दोष
है और आपको
इसपर विश्वास है
तो घबराने कि
ज़रूरत नहीं है|
थोड़े से पूजा-पाठ से
इसको ठीक किया
जा सकता है
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